हुजूम में नहीं हैं और तनहा भी नहीं है,
एक दुसरे के वास्ते लम्हा भी नहीं है
जाने कहाँ पर लिख रहे हैं दास्तान हम,
स्याही भी नहीं है और सफहा भी नहीं है
सारांश
Comments
Post a Comment